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Book 3 in English

The Mahabharata in Sanskrit

Book 3
Chapter 190

  1 [वै]
      भूय एव बराह्मणमहाभाग्यं वक्तुम अर्हसीत्य अब्रवीत पाण्डवेयॊ मार्कण्डेयम
  2 अथाचष्ट मार्कण्डेयः
  3 अयॊध्यायाम इक्षुवाकु कुलॊत्पन्नः पार्थिवः परिक्षिन नाम मृगयाम अगमत
  4 तम एकाश्वेन मृगम अनुसरन्तं मृगॊ दूरम अपाहरत
  5 अथाध्वनि जातश्रमः कषुत्तृष्णाभिभूतश च कस्मिंश चिद उद्देशे नीलं वनषण्डम अपश्यत
      तच च विवेश
  6 ततस तस्य वनषण्डस्य मध्ये ऽतीव रमणीयं सरॊ दृष्ट्वा साश्वैव वयगाहत
  7 अथाश्वस्तः स बिस मृणालम अश्वस्याग्रे निक्षिप्य पुष्करिणी तीरे समाविशत
  8 ततः शयानॊ मधुरं गीतशब्दम अशृणॊत
  9 स शरुत्वा अचिन्तयत
      नेह मनुष्यगतिं पश्यामि
      कस्य खल्व अयं गीतशब्देति
  10 अथापश्यत कन्यां परमरूपदर्शनीयां पुष्पाण्य अवचिन्वतीं गायन्तीं च
 11 अथ सा राज्ञः समीपे पर्यक्रामत
 12 ताम अब्रवीद राजा
     कस्यासि सुभगे तवम इति
 13 सा परत्युवाच
 14 तां राजॊवाच
     अर्थी तवयाहम इति
 15 अथॊवाच कन्या समयेनाहं शक्या तवया लब्धुम
     नान्यथेति
 16 तां राजा समयम अपृच्छत
 17 ततः कन्येदम उवाच
     उदकं मे न दर्शयितव्यम इति
 18 स राजा बाढम इत्य उक्त्वा तां समागम्य तया सहास्ते
 19 तत्रैवासीने राजनि सेनान्वगच्छत
     पदेनानुपदं दृष्ट्वा राजानं परिवार्यातिष्ठत
 20 पर्याश्वस्तश च राजा तयैव सह शिबिकया परायाद अविघाटितया
     सवनगरम अनुप्राप्य रहसि तया सह रमन्न आस्ते
     नान्यत किं चनापश्यत
 21 अथ परधानामात्यस तस्याभ्याश चराः सत्रियॊ ऽपृच्छत
     किम अत्र परयॊजनं वर्ततेति
 22 अथाब्रुवंस ताः सत्रियः
     अपूर्वम इव पश्यामॊदकं नात्र नीयतेति
 23 अथामात्यॊ ऽनुदकं वनं कारयित्वॊदार वृक्षं बहुमूलपुष्पफलं रहस्य उपगम्य राजानम अब्रवीत
     वनम इदम उदारम अनुदकम
     साध्व अत्र रम्यताम इति
 24 स तस्य वचनात तयैव सहदेव्या तद वनं पराविशत
     स कदा चित तस्मिन वने रम्ये तयैव सह वयवहरत
     अथ कषुत तृष्णार्दितः शरान्तॊ ऽतिमात्रम अतिमुक्तागारम अपश्यत
 25 तत परविश्य राजा सह परियया सुधा तलसुकृतां विमलसलिलपूर्णां वापीम अपश्यत
 26 दृष्ट्वैव च तां तस्यैव तीरे सहैव तया देव्या वयतिष्ठत
 27 अथ तां देवीं स राजाब्रवीत
     साधुव अवतर वापी सलिलम इति
 28 सा तद वचॊ शरुत्वावतीर्य वापीं नयमज्जत
     न पुनर उदमज्जत
 29 तां मृगयमाणॊ राजा नापश्यत
 30 वापीम अपि निःस्राव्य मण्डूकं शवभ्रमुखे दृष्ट्वा करुद्धाज्ञापयाम आस
     सर्वमण्डूक वधः करियताम इति
     यॊ मयार्थी स मृतकरि मण्डूकैर उपायनैर माम उपतिष्ठेद इति
 31 अथ मण्डूकवधे घॊरे करियमाणे दिक्षु सर्वासु मण्डूकान भयम आविशत
     ते भीता मण्डूकराज्ञे यथावृत्तं नयवेदयन
 32 ततॊ मण्डूकराट तापस वेषधारी राजानम अभ्यगच्छत
 33 उपेत्य चैनम उवाच
     मा राजन करॊधवशं गमः
     परसादं कुरु
     नार्हसि मण्डूकानाम अनपराधिनां वधं कर्तुम इति
 34 शलॊकौ चात्र भवतः
     मा मण्डूकाञ जिघांस तवं कॊपं संधार्ययाच्युत
     परक्षीयते धनॊद्रेकॊ जनानाम अविजानताम
 35 परतिजानीहि नैतांस तवं पराप्य करॊधं विमॊक्ष्यसे
     अलं कृत्वा तवाधर्मं मण्डूकैः किं हतैर हि ते
 36 तम एवं वादिनम इष्टजनशॊकपरीतात्मा राजा परॊवाच
     न हि कषम्यते तन मया
     हनिष्याम्य एतान
     एतैर दुरात्मभिः परिया मे भक्षिता
     सर्वथैव मे वध्या मण्डूकाः
     नार्हसि विद्वन माम उपरॊद्धुम इति
 37 स तद वाक्यम उपलभ्य वयथितेन्द्रिय मनः परॊवाच
     परसीद राजन
     अहम आयुर नाम मण्डूकराजः
     मम सा दुहिता सुशॊभना नाम
     तस्या दौःशील्यम एतत
     बहवॊ हि राजानस तया विप्रलब्ध पूर्वेति
 38 तम अब्रवीद राजा
     तयास्म्य अर्थी
     स मे दीयताम इति
 39 अथैनां राज्ञे पितादात
     अब्रवीच चैनाम
     एनं राजानं शुश्रूषस्वेति
 40 सॊवाच दुहितरम
     यस्मात तवया राजानॊ विप्रलब्धास तस्माद अब्रह्मण्यानि तवापत्यानि भविष्यन्त्य अनृतकत्वात तवेति
 41 स च राजा ताम उपलभ्य तस्यां सुरत गुणनिबद्धहृदयॊ लॊकत्रयैश्वर्यम इवॊपलभ्य हर्षबाष्पकलया वाच परणिपत्याभिपूज्य मण्डूकराजानम अब्रवीत
     अनुगृहीतॊ ऽसमीति
 42 स च मण्डूकराजॊ जामातरम अनुज्ञाप्य यथागतम अगच्छत
 43 अथ कस्य चित कालस्य तस्यां कुमारास तरयस तस्य राज्ञः संबभूवुः शलॊ दलॊ बलश चेति
     ततस तेषां जयेष्ठं शलं समये पिता राज्ये ऽभिषिच्य तपसि धृतात्मा वनं जगाम
 44 अथ कदा चिच छिलॊ मृगयाम अचरत
     मृगं चासाद्य रथेनान्वधावत
 45 सूतं चॊवाच
     शीघ्रं मां वहस्वेति
 46 स तथॊक्तः सूतॊ राजानम अब्रवीत
     मा करियताम अनुबन्धः
     नैष शक्यस तवया मृगॊ गरहीतुं यद्य अपि ते रथे युक्तौ वाम्य सयाताम इति
 47 ततॊ ऽबरवीद राजा सूतम
     आचक्ष्व मे वाम्य
     हन्मि वा तवाम इति
 48 सैवम उक्तॊ राजभयभीतॊ वामदेव शापभीतश च सन्न आचख्यौ राज्ञे
     वामदेवस्याश्वौ वाम्य मनॊजवाव इति
 49 अथैनम एवं बरुवाणम अब्रवीद राजा
     वामदेवाश्रमं याहीति
 50 स गत्वा वामदेवाश्रमं तम ऋषिम अब्रवीत
     भगवन मृगॊ मया विद्धः पालयते
     तं संभावयेयम
     अर्हसि मे वाम्य दातुम इति
 51 तम अब्रवीद ऋषिः
     ददानि ते वाम्य
     कृतकार्येण भवता ममैव निर्यात्यौ कषिप्रम इति
 52 स च ताव अश्वौ परतिगृह्यानुज्ञाप्य चर्षिं परायाद वाम्य संयुक्तेन रथेन मृगं परति
     गच्छंश चाब्रवीत सूतम
     अश्वरत्नाव इमाव अयॊग्यौ बराह्मणानाम
     नैतौ परतिदेयौ वामदेवायेति
 53 एवम उक्त्वा मृगम अवाप्य सवनगरम एत्याश्वावन्तःपुरे ऽसथापयत
 54 अथर्षिश चिन्तयाम आस
     तरुणॊ राजपुत्रः कल्याणं पत्रम आसाद्य रमते
     न मे परतिनिर्यातयति
     अहॊ कष्टम इति
 55 मनसा निश्चित्य मासि पूर्णे शिष्यम अब्रवीत
     गच्छात्रेय
     राजानं बरूहि
     यदि पर्याप्तं निर्यातयॊपाध्याय वाम्येति
 56 स गत्वैवं तं राजानम अब्रवीत
 57 तं राजा परत्युवाच
     राज्ञाम एतद वाहनम
     अनर्हा बराह्मणा रत्नानाम एवंविधानाम
     किं च बराह्मणानाम अश्वैः कार्यम
     साधु परतिगम्यताम इति
 58 स गत्वैवम उपाध्यायायाचष्ट
 59 तच छरुत्वा वचनम अप्रियं वामदेवः करॊधपरीतात्मा सवयम एव राजानम अभिगम्याश्वार्थम अभ्यचॊदयत
     न चादाद राजा
 60 [वाम]
     परयच्छ वाम्यौ मम पार्थिव तवं; कृतं हि ते कार्यम अन्यैर अशक्यम
     मा तवा वधीद वरुणॊ घॊरपाशैर; बरह्मक्षत्रस्यान्तरे वर्तमानः
 61 [राजा]
     अनड्वाहौ सुव्रतौ साधु दान्ताव; एतद विप्राणां वाहनं वामदेव
     ताभ्यां याहि तवं यत्र कामॊ महर्षे; छन्दांसि वै तवादृशं संवहन्ति
 62 [वाम]
     छन्दांसि वै मादृशं संवहन्ति; लॊके ऽमुष्मिन पार्थिव यानि सन्ति
     अस्मिंस तु लॊके मम यानम एतद; अस्मद्विधानाम अपरेषां च राजन
 63 [राजा]
     चत्वारॊ वा गर्दभास तवां वहन्तु; शरेष्ठाश्वतर्यॊ हरयॊ वा तुरंगाः
     तैस तवं याहि कषत्रियस्यैष वाहॊ; मम वाम्यौ न तवैतौ हि विद्धि
 64 [वाम]
     घॊरं वरतं बराह्मणस्यैतद आहुर; एतद राजन यद इहाजीवमानः
     अयस्मया घॊररूपा महान्तॊ; वहन्तु तवां शितशूलाश चतुर्धा
 65 [राजा]
     ये तवा विदुर बराह्मणं वामदेव; वाचा हन्तुं मनसा कर्मणा वा
     ते तवां सशिष्यम इह पातयन्तु; मद्वाक्यनुन्नाः शितशूलासि हस्ताः
 66 [वाम]
     नानुयॊगा बराह्मणानां भवन्ति; वाचा राजन मनसा कर्मणा वा
     यस तव एवं बरह्म तपसान्वेति; विद्वांस तेन शरेष्ठॊ भवति हि जीवमानः
 67 [मार्क]
     एवम उक्ते वामदेवेन राजन; समुत्तस्थू राक्षसा घॊररूपाः
     तैः शूलहस्तैर वध्यमानः स राजा; परॊवाचेदं वाक्यम उच्चैस तदानीम
 68 इक्ष्वाकवॊ यदि बरह्मन दलॊ वा; विधेया मे यदि वान्ये विशॊ ऽपि
     नॊत्स्रक्ष्ये ऽहं वामदेवस्य वाम्यौ; नैवंविधा धर्मशीला भवन्ति
 69 एवं बरुवन्न एव स यातुधानैर; हतॊ जगामाशु महीं कषितीशः
     ततॊ विदित्वा नृपतिं निपातितम; इक्ष्वाकवॊ वै दलम अभ्यषिञ्चन
 70 राज्ये तदा तत्र गत्वा स विप्रः; परॊवाचेदं वचनं वामदेवः
     दलं राजानं बराह्मणानां हि देयम; एवं राजन सर्वधर्मेषु दृष्टम
 71 बिभेषि चेत तवम अधर्मान नरेन्द्र; परयच्छ मे शीघ्रम एवाद्य वाम्यौ
     एतच छरुत्वा वामदेवस्य वाक्यं; स पार्थिवः सूतम उवाच रॊषात
 72 एकं हि मे सायकं चित्ररूपं; दिग्धं विषेणाहर संगृहीतम
     येन विद्धॊ वामदेवः शयीत; संदश्यमानः शवभिर आर्तरूपः
 73 [वाम]
     जानामि पुत्रं दशवर्षं तवाहं; जातं महिष्यां शयेनजितं नरेन्द्र
     तं जहि तवं मद्वचनात परणुन्नस; तूर्णं परियं सायकैर घॊररूपैः
 74 [मार्क]
     एवम उक्तॊ वामदेवेन राजन्न; अन्तःपुरे राजपुत्रं जघान
     स सायकस तिग्मतेजा विसृष्टः; शरुत्वा दलस तच च वाक्यं बभाषे
 75 इक्ष्वाकवॊ हन्त चरामि वः परियं; निहन्मीमं विप्रम अद्य परमथ्य
     आनीयताम अपरस तिग्मतेजाः; पश्यध्वं मे वीर्यम अद्य कषितीशाः
 76 [वाम]
     यं तवम एनं सायकं घॊररूपं; विषेण दिग्धं मम संदधासि
     न तवम एनं शरवर्यं विमॊक्तुं; संधातुं वा शक्ष्यसि मानवेन्द्र
 77 [राजा]
     इक्ष्वाकवः पश्यत मां गृहीतं; न वै शक्नॊम्य एष शरं विमॊक्तुम
     न चास्य कर्तुं नाशम अभ्युत्सहामि; आयुष्मान वै जीवतु वामदेवः
 78 [वाम]
     संस्पृशैनां महिषीं सायकेन; ततस तस्माद एनसॊ मॊक्ष्यसे तवम
 79 [मार्क]
     ततस तथा कृतवान पार्थिवस तु; ततॊ मुनिं राजपुत्री बभाषे
     यथा युक्तं वामदेवाहम एनं; दिने दिने संविशन्ती वयशंसम
     बराह्मणेभ्यॊ मृगयन्ती सूनृतानि; तथा बरह्मन पुण्यलॊकं लभेयम
 80 [वाम]
     तवया तरातं राजकुलं शुभेक्षणे; वरं वृणीष्वाप्रतिमं ददानि ते
     परशाधीमं सवजनं राजपुत्रि; इक्ष्वाकुराज्यं सुमहच चाप्य अनिन्द्ये
 81 [राजपुत्री]
     वरं वृणे भगवन्न एकम एव; विमुच्यतां किल्बिषाद अद्य भर्ता
     शिवेन चाध्याहि सपुत्रबान्धवं; वरॊ वृतॊ हय एष मया दविजाग्र्य
 82 [मार्क]
     शरुत्वा वचॊ स मुनी राजपुत्र्यास; तथास्त्व इति पराह कुरुप्रवीर
     ततः स राजा मुदितॊ बभूव; वाम्यौ चास्मै संप्रददौ परणम्य
  1 [vai]
      bhūya eva brāhmaṇamahābhāgyaṃ vaktum arhasīty abravīt pāṇḍaveyo mārkaṇḍeyam
  2 athācaṣṭa mārkaṇḍeyaḥ
  3 ayodhyāyām ikṣuvāku kulotpannaḥ pārthivaḥ parikṣin nāma mṛgayām agamat
  4 tam ekāśvena mṛgam anusarantaṃ mṛgo dūram apāharat
  5 athādhvani jātaśramaḥ kṣuttṛṣṇābhibhūtaś ca kasmiṃś cid uddeśe nīlaṃ vanaṣaṇḍam apaśyat
      tac ca viveśa
  6 tatas tasya vanaṣaṇḍasya madhye 'tīva ramaṇīyaṃ saro dṛṣṭvā sāśvaiva vyagāhata
  7 athāśvastaḥ sa bisa mṛṇālam aśvasyāgre nikṣipya puṣkariṇī tīre samāviśat
  8 tataḥ śayāno madhuraṃ gītaśabdam aśṛṇot
  9 sa śrutvā acintayat
      neha manuṣyagatiṃ paśyāmi
      kasya khalv ayaṃ gītaśabdeti
  10 athāpaśyat kanyāṃ paramarūpadarśanīyāṃ puṣpāṇy avacinvatīṃ gāyantīṃ ca
 11 atha sā rājñaḥ samīpe paryakrāmat
 12 tām abravīd rājā
     kasyāsi subhage tvam iti
 13 sā pratyuvāca
 14 tāṃ rājovāca
     arthī tvayāham iti
 15 athovāca kanyā samayenāhaṃ śakyā tvayā labdhum
     nānyatheti
 16 tāṃ rājā samayam apṛcchat
 17 tataḥ kanyedam uvāca
     udakaṃ me na darśayitavyam iti
 18 sa rājā bāḍham ity uktvā tāṃ samāgamya tayā sahāste
 19 tatraivāsīne rājani senānvagacchat
     padenānupadaṃ dṛṣṭvā rājānaṃ parivāryātiṣṭhat
 20 paryāśvastaś ca rājā tayaiva saha śibikayā prāyād avighāṭitayā
     svanagaram anuprāpya rahasi tayā saha ramann āste
     nānyat kiṃ canāpaśyat
 21 atha pradhānāmātyas tasyābhyāśa carāḥ striyo 'pṛcchat
     kim atra prayojanaṃ vartateti
 22 athābruvaṃs tāḥ striyaḥ
     apūrvam iva paśyāmodakaṃ nātra nīyateti
 23 athāmātyo 'nudakaṃ vanaṃ kārayitvodāra vṛkṣaṃ bahumūlapuṣpaphalaṃ rahasy upagamya rājānam abravīt
     vanam idam udāram anudakam
     sādhv atra ramyatām iti
 24 sa tasya vacanāt tayaiva sahadevyā tad vanaṃ prāviśat
     sa kadā cit tasmin vane ramye tayaiva saha vyavaharat
     atha kṣut tṛṣṇārditaḥ śrānto 'timātram atimuktāgāram apaśyat
 25 tata praviśya rājā saha priyayā sudhā talasukṛtāṃ vimalasalilapūrṇāṃ vāpīm apaśyat
 26 dṛṣṭvaiva ca tāṃ tasyaiva tīre sahaiva tayā devyā vyatiṣṭhat
 27 atha tāṃ devīṃ sa rājābravīt
     sādhuv avatara vāpī salilam iti
 28 sā tad vaco śrutvāvatīrya vāpīṃ nyamajjat
     na punar udamajjat
 29 tāṃ mṛgayamāṇo rājā nāpaśyat
 30 vāpīm api niḥsrāvya maṇḍūkaṃ śvabhramukhe dṛṣṭvā kruddhājñāpayām āsa
     sarvamaṇḍūka vadhaḥ kriyatām iti
     yo mayārthī sa mṛtakari maṇḍūkair upāyanair mām upatiṣṭhed iti
 31 atha maṇḍūkavadhe ghore kriyamāṇe dikṣu sarvāsu maṇḍūkān bhayam āviśat
     te bhītā maṇḍūkarājñe yathāvṛttaṃ nyavedayan
 32 tato maṇḍūkarāṭ tāpasa veṣadhārī rājānam abhyagacchat
 33 upetya cainam uvāca
     mā rājan krodhavaśaṃ gamaḥ
     prasādaṃ kuru
     nārhasi maṇḍūkānām anaparādhināṃ vadhaṃ kartum iti
 34 ślokau cātra bhavataḥ
     mā maṇḍūkāñ jighāṃsa tvaṃ kopaṃ saṃdhāryayācyuta
     prakṣīyate dhanodreko janānām avijānatām
 35 pratijānīhi naitāṃs tvaṃ prāpya krodhaṃ vimokṣyase
     alaṃ kṛtvā tavādharmaṃ maṇḍūkaiḥ kiṃ hatair hi te
 36 tam evaṃ vādinam iṣṭajanaśokaparītātmā rājā provāca
     na hi kṣamyate tan mayā
     haniṣyāmy etān
     etair durātmabhiḥ priyā me bhakṣitā
     sarvathaiva me vadhyā maṇḍūkāḥ
     nārhasi vidvan mām uparoddhum iti
 37 sa tad vākyam upalabhya vyathitendriya manaḥ provāca
     prasīda rājan
     aham āyur nāma maṇḍūkarājaḥ
     mama sā duhitā suśobhanā nāma
     tasyā dauḥśīlyam etat
     bahavo hi rājānas tayā vipralabdha pūrveti
 38 tam abravīd rājā
     tayāsmy arthī
     sa me dīyatām iti
 39 athaināṃ rājñe pitādāt
     abravīc cainām
     enaṃ rājānaṃ śuśrūṣasveti
 40 sovāca duhitaram
     yasmāt tvayā rājāno vipralabdhās tasmād abrahmaṇyāni tavāpatyāni bhaviṣyanty anṛtakatvāt taveti
 41 sa ca rājā tām upalabhya tasyāṃ surata guṇanibaddhahṛdayo lokatrayaiśvaryam ivopalabhya harṣabāṣpakalayā vāca praṇipatyābhipūjya maṇḍūkarājānam abravīt
     anugṛhīto 'smīti
 42 sa ca maṇḍūkarājo jāmātaram anujñāpya yathāgatam agacchat
 43 atha kasya cit kālasya tasyāṃ kumārās trayas tasya rājñaḥ saṃbabhūvuḥ śalo dalo balaś ceti
     tatas teṣāṃ jyeṣṭhaṃ śalaṃ samaye pitā rājye 'bhiṣicya tapasi dhṛtātmā vanaṃ jagāma
 44 atha kadā cic chilo mṛgayām acarat
     mṛgaṃ cāsādya rathenānvadhāvat
 45 sūtaṃ covāca
     śīghraṃ māṃ vahasveti
 46 sa tathoktaḥ sūto rājānam abravīt
     mā kriyatām anubandhaḥ
     naiṣa śakyas tvayā mṛgo grahītuṃ yady api te rathe yuktau vāmya syātām iti
 47 tato 'bravīd rājā sūtam
     ācakṣva me vāmya
     hanmi vā tvām iti
 48 saivam ukto rājabhayabhīto vāmadeva śāpabhītaś ca sann ācakhyau rājñe
     vāmadevasyāśvau vāmya manojavāv iti
 49 athainam evaṃ bruvāṇam abravīd rājā
     vāmadevāśramaṃ yāhīti
 50 sa gatvā vāmadevāśramaṃ tam ṛṣim abravīt
     bhagavan mṛgo mayā viddhaḥ pālayate
     taṃ saṃbhāvayeyam
     arhasi me vāmya dātum iti
 51 tam abravīd ṛṣiḥ
     dadāni te vāmya
     kṛtakāryeṇa bhavatā mamaiva niryātyau kṣipram iti
 52 sa ca tāv aśvau pratigṛhyānujñāpya carṣiṃ prāyād vāmya saṃyuktena rathena mṛgaṃ prati
     gacchaṃś cābravīt sūtam
     aśvaratnāv imāv ayogyau brāhmaṇānām
     naitau pratideyau vāmadevāyeti
 53 evam uktvā mṛgam avāpya svanagaram etyāśvāvantaḥpure 'sthāpayat
 54 atharṣiś cintayām āsa
     taruṇo rājaputraḥ kalyāṇaṃ patram āsādya ramate
     na me pratiniryātayati
     aho kaṣṭam iti
 55 manasā niścitya māsi pūrṇe śiṣyam abravīt
     gacchātreya
     rājānaṃ brūhi
     yadi paryāptaṃ niryātayopādhyāya vāmyeti
 56 sa gatvaivaṃ taṃ rājānam abravīt
 57 taṃ rājā pratyuvāca
     rājñām etad vāhanam
     anarhā brāhmaṇā ratnānām evaṃvidhānām
     kiṃ ca brāhmaṇānām aśvaiḥ kāryam
     sādhu pratigamyatām iti
 58 sa gatvaivam upādhyāyāyācaṣṭa
 59 tac chrutvā vacanam apriyaṃ vāmadevaḥ krodhaparītātmā svayam eva rājānam abhigamyāśvārtham abhyacodayat
     na cādād rājā
 60 [vāma]
     prayaccha vāmyau mama pārthiva tvaṃ; kṛtaṃ hi te kāryam anyair aśakyam
     mā tvā vadhīd varuṇo ghorapāśair; brahmakṣatrasyāntare vartamānaḥ
 61 [rājā]
     anaḍvāhau suvratau sādhu dāntāv; etad viprāṇāṃ vāhanaṃ vāmadeva
     tābhyāṃ yāhi tvaṃ yatra kāmo maharṣe; chandāṃsi vai tvādṛśaṃ saṃvahanti
 62 [vāma]
     chandāṃsi vai mādṛśaṃ saṃvahanti; loke 'muṣmin pārthiva yāni santi
     asmiṃs tu loke mama yānam etad; asmadvidhānām apareṣāṃ ca rājan
 63 [rājā]
     catvāro vā gardabhās tvāṃ vahantu; śreṣṭhāśvataryo harayo vā turaṃgāḥ
     tais tvaṃ yāhi kṣatriyasyaiṣa vāho; mama vāmyau na tavaitau hi viddhi
 64 [vāma]
     ghoraṃ vrataṃ brāhmaṇasyaitad āhur; etad rājan yad ihājīvamānaḥ
     ayasmayā ghorarūpā mahānto; vahantu tvāṃ śitaśūlāś caturdhā
 65 [rājā]
     ye tvā vidur brāhmaṇaṃ vāmadeva; vācā hantuṃ manasā karmaṇā vā
     te tvāṃ saśiṣyam iha pātayantu; madvākyanunnāḥ śitaśūlāsi hastāḥ
 66 [vāma]
     nānuyogā brāhmaṇānāṃ bhavanti; vācā rājan manasā karmaṇā vā
     yas tv evaṃ brahma tapasānveti; vidvāṃs tena śreṣṭho bhavati hi jīvamānaḥ
 67 [mārk]
     evam ukte vāmadevena rājan; samuttasthū rākṣasā ghorarūpāḥ
     taiḥ śūlahastair vadhyamānaḥ sa rājā; provācedaṃ vākyam uccais tadānīm
 68 ikṣvākavo yadi brahman dalo vā; vidheyā me yadi vānye viśo 'pi
     notsrakṣye 'haṃ vāmadevasya vāmyau; naivaṃvidhā dharmaśīlā bhavanti
 69 evaṃ bruvann eva sa yātudhānair; hato jagāmāśu mahīṃ kṣitīśaḥ
     tato viditvā nṛpatiṃ nipātitam; ikṣvākavo vai dalam abhyaṣiñcan
 70 rājye tadā tatra gatvā sa vipraḥ; provācedaṃ vacanaṃ vāmadevaḥ
     dalaṃ rājānaṃ brāhmaṇānāṃ hi deyam; evaṃ rājan sarvadharmeṣu dṛṣṭam
 71 bibheṣi cet tvam adharmān narendra; prayaccha me śīghram evādya vāmyau
     etac chrutvā vāmadevasya vākyaṃ; sa pārthivaḥ sūtam uvāca roṣāt
 72 ekaṃ hi me sāyakaṃ citrarūpaṃ; digdhaṃ viṣeṇāhara saṃgṛhītam
     yena viddho vāmadevaḥ śayīta; saṃdaśyamānaḥ śvabhir ārtarūpaḥ
 73 [vāma]
     jānāmi putraṃ daśavarṣaṃ tavāhaṃ; jātaṃ mahiṣyāṃ śyenajitaṃ narendra
     taṃ jahi tvaṃ madvacanāt praṇunnas; tūrṇaṃ priyaṃ sāyakair ghorarūpaiḥ
 74 [mārk]
     evam ukto vāmadevena rājann; antaḥpure rājaputraṃ jaghāna
     sa sāyakas tigmatejā visṛṣṭaḥ; śrutvā dalas tac ca vākyaṃ babhāṣe
 75 ikṣvākavo hanta carāmi vaḥ priyaṃ; nihanmīmaṃ vipram adya pramathya
     ānīyatām aparas tigmatejāḥ; paśyadhvaṃ me vīryam adya kṣitīśāḥ
 76 [vāma]
     yaṃ tvam enaṃ sāyakaṃ ghorarūpaṃ; viṣeṇa digdhaṃ mama saṃdadhāsi
     na tvam enaṃ śaravaryaṃ vimoktuṃ; saṃdhātuṃ vā śakṣyasi mānavendra
 77 [rājā]
     ikṣvākavaḥ paśyata māṃ gṛhītaṃ; na vai śaknomy eṣa śaraṃ vimoktum
     na cāsya kartuṃ nāśam abhyutsahāmi; āyuṣmān vai jīvatu vāmadevaḥ
 78 [vāma]
     saṃspṛśaināṃ mahiṣīṃ sāyakena; tatas tasmād enaso mokṣyase tvam
 79 [mārk]
     tatas tathā kṛtavān pārthivas tu; tato muniṃ rājaputrī babhāṣe
     yathā yuktaṃ vāmadevāham enaṃ; dine dine saṃviśantī vyaśaṃsam
     brāhmaṇebhyo mṛgayantī sūnṛtāni; tathā brahman puṇyalokaṃ labheyam
 80 [vāma]
     tvayā trātaṃ rājakulaṃ śubhekṣaṇe; varaṃ vṛṇīṣvāpratimaṃ dadāni te
     praśādhīmaṃ svajanaṃ rājaputri; ikṣvākurājyaṃ sumahac cāpy anindye
 81 [rājaputrī]
     varaṃ vṛṇe bhagavann ekam eva; vimucyatāṃ kilbiṣād adya bhartā
     śivena cādhyāhi saputrabāndhavaṃ; varo vṛto hy eṣa mayā dvijāgrya
 82 [mārk]
     śrutvā vaco sa munī rājaputryās; tathāstv iti prāha kurupravīra
     tataḥ sa rājā mudito babhūva; vāmyau cāsmai saṃpradadau praṇamya


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